Computer Fundamental

कंप्यूटर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में

कम्प्यूटर परिचय का एक उदहारण

हम यहाँ इस इमेज में देखकर समझने का प्रयास करेंगे की एक ब्यक्ति द्वारा दुसरे ब्यक्ति से प्रश्न किया जा रहा है तथा दुसरे ब्यक्ति द्वारा पहले वाले के प्रश्न का उतर दिया जा रहा है. यहाँ यह भी हो सकता है की कुछ देर बाद या कभी भी दूसरा ब्यक्ति पहले वाले प्रश्न पूछ सकता है और यह संभव भी है. इसीलिए की प्राकृत रूप से ये दोनों इन्सान ही है.

अब हम यहाँ दुसरे तरीके से समझने का प्रयास करेंगे. एक मालिक एक नौकर से अपने किसी काम के लिए उसे आदेश दे रहा है और नौकर उसके आदेश का उत्तर दे रहा है.

अब आप इस इमेज को देख कर यहाँ समझ सकते है की एक ब्यक्ति द्वारा कंप्यूटर को आदेश दिया जा रहा है और कंप्यूटर एक नौकर की तरह मालिक को उसका उत्तर दे रहा है.

इस प्रकार हम यह कह सकते है की कंप्यूटर एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक मशीन होता है जो हमारे द्वारा दिए गए हर आदेश का पालन करता है जिस प्रकार एक नौकर मालिक का हर आदेश का पालन करता है. किन्तु इस इलेक्ट्रॉनिक नौकर (कंप्यूटर) में इन्सान की तरह महसूस करने की छमता और बुद्धि नहीं होता है ना ही इसे कोई थकान या कमजोरी  महसूस होती है. साथ ही लगातार हमारे आदेशों का पालन 24 घंटे कर सकता है.

कम्प्यूटर शब्द का उद्भव कम्प्यूटर “कंप्यूट” से हुआ है. यह एक इलेक्ट्राॅनिक उपकरण होता है जिसे प्रत्यक्ष अपने हाथों के द्वारा चलाया जाता है. जो कठिन – से – कठिन समस्याओं का समाधान पलक झपते ही हल सहीत निकाल देने का क्षमता रखता है जिसे हिन्दी में “संगणक” कहते हैं. यह देखने में समान्य कैलकुलेटर, टाईपराइटर, टेलिविजन जैसा मिलता – जुलता हुआ उपकरण माना जा सकता है, जो अपने सभी कार्यो का सम्पादन प्रदर्शित करके करता है तथा साथ – ही – साथ भविष्य में दुबारा प्रयोग किये जाने के लिए संचित भी रखता है. आज के इस मानव जीवन में कम्प्यूटर क्रांति साबित हो चुका है जो मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. तथा मानव जीवन के  बीच इसका अधिक उपयोग हाने का कारण है कि इससे हम अपने जीवन को और अधिक सरल बना सकते हैं. कम्प्यूटर का अधिक उपयोग होना हम अपने बीच देख सकते है, जैसे प्रकाशन के कार्य में, डिजिटल स्टूडियो में फोटो तैयार करना, छपाई कार्य के लिए कंम्पोजिंग तैयार करना, मोबाईल में साॅफ्टवेयर, रिंग टोन डाउनलोडिंग इत्यादी ये सभी शहरों में अपने आस पास देखने को मिलते हैं. इतना ही नहीं आज कल घरों में भी कम्प्यूटर रंगीन टेलिविजन का स्थान लेता जा रहा है और यह अधिक उपयोगी समझा जाने लगा है, क्योंकि घर में बच्चों के लिए मनोरंजन के साधन होने चाहिए. कम्प्यूटर का क्षेत्र कापफी विकसित हो चुका है जैसे – विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन एजुकेशन प्राप्त करना, वेब साइट देखना, फिल्म तैयार करना, चिकित्सालयों में, कंपनियों आदि में कम्प्यूटर का अधिक प्रयोग होता जा रहा है. अब तो आप समझ ही चुके होगें की आज के इस युग में कम्प्यूटर कितनी उपयोगी साबित हो चुका है.

कंप्यूटर का प्रकार

कम्प्यूटर अपने काम-काज, प्रयोजन या उद्देश्य तथा रुप आकार के आधर पर विभिन्न प्रकार के होते हैं. वस्तुतः अनुप्रयोग के आधर पर तीन प्रकार के होते हैं

  1. एनलाॅग कम्प्यूटर (Analog Computer)
  2. डिजिटल कम्प्यूटर (Digital Computer)
  3. हाइब्रिड कम्प्यूटर (Hybrid Computer)
    1. एनलाॅग कम्प्यूटर वे कम्प्यूटर होते हैं जो भौतिक मात्राओं, जैसे-दाब, ताप, लम्बाई आदि को मापकर उनके परिमाप अंक को प्राप्त करते हैं. ये कम्प्यूटर किसी राशी का परिणम तुलना के आधर पर करते हैं. जैसे की एक थर्मामीटर कोई गणना नहीं करता अपितु यह पारे सम्बंधित प्रसार की तुलना करके शरीर के तापमान को मापता है. एनलाॅग कम्प्यूटर मुख्य रुप से विज्ञान और इंजिनियरिंग के क्षेत्र में प्रयोग किये जाते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में मात्राओं का अधिक प्रयोग किया जाता है. ये कम्प्यूटर सिर्फ अनुमानित परिणाम ही देते हैं.
    2. डिजिटल कम्प्यूटर वे कम्प्यूटर होते हैं जो अंको की गणना करते है. जब अधिकतर लोग कम्प्यूटर के बारे में विचार विमर्श करते हैं तो वो डिजिटल कम्प्यूटर ही होता है. जो व्यापार को चलाते हैं, घर का बजट तैयार करते हैं और अन्य सभी कार्य जो कम्प्यूटर कर सकता है वह करते हैं.
    3. हाईब्रिड का अर्थ है अनेक गुण-धर्म से युक्त होना. वे कम्प्यूटर जिनमें एनलाॅग तथा डिजिटल कम्प्यूटर दोनों के गुण हो हाईब्रिड कम्प्यूटर कहलाते हैं. जैसेः कम्प्यूटर की एनलाॅग डिवाइस किसी रोगी के लक्षणों-तापमान, रक्तचाप आदि को मापती है. ये परिणाम बाद में डिजिटल अंको में बदल जाता है. इस प्रकार रोगी के अंग में आये-उतार चढ़ाव का तत्काल प्रेक्षण किया जाता है.

इसी प्रकार कंप्यूटर अपने काम-काज, प्रयोजन या उद्देश्य तथा रुप आकार के आधर पर विभिन्न प्रकार के होते हैं. वस्तुतः प्रयोग के आधर पर चार प्रकार के होते हैं.

  1. मेनफ्रेम कंप्यूटर (Mainframe Computer)
  2. मिनी कंप्यूटर (Mini Computer)
  3. माइक्रो कंप्यूटर (Micro Computer)
  4. सुपर कंप्यूटर (Super Computer)
  1. मेनफ़्रेम कम्प्यूटर :- ये कम्प्यूटर आकार में बहुत बड़े होते हैं साथ ही इनकी संग्रह क्षमता भी अधिक होती है. इसमें अधिक मात्रा में डाटा पर तिव्रता से प्रोसेस किया जाता है इसिलिए इसका प्रयोग बड़ी-बड़ी कम्पनीयाँ, बैंक तथा सरकारी विभाग एक केन्द्रिय कम्प्यूटर के रुप में करते हैं, ये चैबीस घंटे कार्य करते हैं और उपयोगकर्ता एक साथ कार्य कर सकते है. अधिकतर कम्पनीयाँ या संस्थाएँ मेनफ्रेम कम्प्यूटर का उपयोग निम्नलिखित कार्य के लिए करती है. जैसेः-भुगतानों का ब्योरा रखना, उपभोक्ताओं द्वारा खरीद का ब्योरा रखना, कर्मचारियों को भुगतान करना, कर का विस्तृत ब्योरा रखना आदि.
  2. मिनी कम्प्यूटर:- ये कम्प्यूटर मध्यम आकार के होते हैं. ये व्यक्तिगत रुप से खरिदे नहीं जा सकते. इन्हे छोटी या माध्यम स्तर की कम्पनीयाँ काम में ले सकती है. इस कम्प्यूटर पर एक से अधिक व्यक्ति कार्य कर सकते हैं ये मेनफ्रेम से सस्ते होते है. एक माध्यम स्तर की कंपनियां मिनी कम्प्यूटर का उपयोग निम्नलिखित कार्य के लिए करती हैः- कर्मचारियों के लिए वेतन पत्र तैयार करना, वित्तीय खातों का रख रखाव, लागत-विश्लेषण, उत्पाद योजना आदि.
  3. माइक्रो कंप्यूटर:- तकनीक के क्षेत्र में सन् 1970 ई0 में एक क्रांतिकारी प्रणाली का अविष्कार हुआ. यह अविष्कार “माइक्रोप्रोसेसर” का हुआ जिसके उपयोग से सस्ती कम्प्यूटर प्रणाली बनाना संभव हो गया. यह कम्प्यूटर एक टेबल पर या ब्रीफ़केस में आसानी से रखे जा सकते हैं. ये छोटे कम्प्यूटर माइक्रो कम्प्यूटर कहलाते हैं. यह कम्प्यूटर, कीमत में सस्ते एवं आकार में छोटे होते है इसिलिए यह व्यक्गित उपयोग के लिए घर या बाहर किसी भी क्षेत्रा में लगाए जा सकते हैं. इन्हे पर्सनल कम्प्यूटर या पी0सी0 भी कहते हैं. व्यापार में माइक्रो कम्प्यूटर का व्यापक उपयोग होता है. व्यापार बड़ा हो या छोटा माइक्रो कम्प्यूटर दोनों में ही उपयोगी है. छोटे व्यवसाय में यह किये गए व्यापार का ब्योरा रखता है, पत्र-व्यवहार के लिए पत्र तैयार करता है, उपभोक्ताओं के लिए बिल तैयार करता है, नियमित लेखांकन तैयार करता है आदि. इसमें एक ही सी0पी0यू0 लगा होता है. वर्तमान समय में माइक्रो कम्प्यूटर का विकास काफी तेजी से हो रहा है. माइक्रो कम्प्यूटर 1 हजार से 1 लाख रुपये तक के मौजूद है.
  4. सुपर कम्प्यूटर:- – यह सभी श्रेणियों में सबसे बड़े, सबसे अधिक क्षमता वाले, सबसे अधिक गति वाले होते हैं. इनमें अनेक सी0पी0यू0 समानान्तर क्रम में कार्य करते हैं. इस क्रिया को समान्तर क्रिया कहते हैं. एक सी0पी0यू0 द्वारा डाटा और प्रोग्राम एक धरा में क्रियान्वित करने की परम्परिक विचारधरा ह्यूमन न्यूमान सिधांत कहलाती है. लेकिन सुपर कम्प्यूटर नाॅन-वान न्यूमान सिधांत कहलाती है और इसे इसी के आधर पर तैयार किया गया है. सुपर कम्प्यूटर में अनेक ए0एल0यू0 तथा सी0पी0यू0 का एक भाग होता है. प्रत्येक सी०पी०यू० एक निश्चित क्रिया के लिए होता है. और सभी ए0एल0यू0 एक समान्तर प्रक्रिया के लिए होते हैं. इसका कार्य निम्नलिखित होता हैः- बड़े वैज्ञानिक खोज व प्रयोगशालाओं में इस कंप्यूटर का प्रयोग होता है, अन्तरिक्ष-यात्रियों को अन्तरिक्ष में भेजना, मौसम की भविष्यवाणी, उच्चगुणवता की एनीमेशन वाले चलचित्र का निर्माण करना आदि. यह कम्प्यूटर सबसे महंगे होते हैं इसकी किमत अरबों रुपये में होता है. भारत के पास एक सुपर कम्प्यूटर है जिसका नाम परम है. इसे भारतीय कम्प्यूटर वैज्ञानिक ने ही भारतवर्ष में तैयार किया है. इसका विकसित रुप परम 10000-H भी तैयार कर लिया गया है. सुपर कम्प्यूटर के अन्य उदाहरण हैं- Fujitsu Fugaku, IBM Summit, IBM/Nvidia/Mellanox Sierra, Sunway TaihuLight आदि.

कंप्यूटर की उत्पत्ति

आज कम्प्यूटर जिस ऊँचाई तक आ पहुँचा है मैने इसकी कभी कल्पना भी नहीं किया था. और नमन है उस व्यक्ति कि जिसने इस शक्तिशाली मशीन को बनाया. कम्प्यूटर का इतिहास आज से करीब 3000 वर्ष पुराना है. उस समय चीन में एक गणना यंत्र का अविष्कार हुआ जिसे अबेकस कहते है यह एक आंतरिक डिवाइस है जो एशिया के अनेक देशो में काम आता है. अबेकस तारों का एक फ्रेम होता है इन तारों में बीड (मिट्टी की गोलियाँ) पिरोई रहती है. प्रारंभ में अबेकस को व्यापारी गणनाएँ करने के काम में प्रयोग किया करते थे. यह मशीन जोड़, बाकी, गुणा, भाग की क्रियाएँ करने के काम आति है. शताब्दियों के बाद अनेक मशीनें गणना के लिए विकसित की गई. सत्रहवीं सताब्दी में फ्रांस के गणितज्ञ ब्लेज पास्कल जिनका जन्म 1623 तथा मृत्यु 1662 ई0 में हुआ, ने 1642 ई0 में अंकीय गणना यंत्र का अविष्कार किया इस मशीन को एडिंग भी कहते थे क्योंकि यह जोड़ और बाकी का काम करता था. यह मशीन घड़ी आडोमीटर के सिद्दांत पर कार्य करती थी. जिसपर 0 से 9 तक के अंक क्षपे थे. ब्लेज पास्कल की इस एडिंग मशीन को पास्कलाईन भी कहते है, जो सबसे पहला यांत्रिक गणना यंत्रा था यह आज भी गाड़ियों में कार्य करता है. सन् 1673 में जर्मन गणितज्ञ व दार्शनिक गोटफ्रैंड वाॅन लेबनीज (1646-1716) ने पास्कलाइन का विकसित रुप तैयार किया जिसे रेक्निंग मशीन कहते हैं जो अंको के जोड़ व बाकी के गुणा व भाग की प्रक्रिया भी कर सकती थी. कम्प्यूटर के इतिहास में उन्नीसवीं शताब्दी को स्वर्णिम युग माना जाता है. अंग्रेज गणितज्ञ चार्ल्स बैबेज ने एक यांत्रिक गणना करने वाली मशीन को विकसित करने की आवशकता तब महसूस की जब गणना करने वाली हस्त-निर्मित मशीनों में त्रुटी आ जाती थी. चार्ल्स बैबेज ने 1882 ई0 में एक मशीन बनाया जिसका नाम डिफरेन्स इन्जिन रख गया. इसमें शिफ्ट और गियर लगे थे जो भापफ से चलती थी. जिसका व्यय ब्रिटिश सरकार ने वहन किया था. सन् 1840 ई0 में चार्ल्स बैबेज ने डिफरेन्स इन्जिन का विकसित रुप एनालिटिकल इन्जिन तैयार किया. यह मशीन कई प्रकार से गणना का कार्य कर समता था और यह सर्वप्रथम ऐसी मशीन थी जो निर्देशों को संग्रहीत कर सकती थी तथा इसके द्वारा स्वचलित परिणाम भी छापे जा सकते थे. बैबेज का कम्प्यूटर के विकास में बहुत बड़ा योगदान रहा जिन्हे कम्प्यूटर विज्ञान का जनक कहा जाता है. अंततः इस बढ़ते हुए क्रियाशील मशीन को देख नहीं पाये और बाद में  उनकी सहयोगी एडा ऑगस्टा ने इस कार्य को आगे बढ़या और उन्हें दुनिया की सबसे पहली प्रोग्रामर कही जाने लगी. एडा ऑगस्टा ने ही द्वि-आधरी संख्याओं (बाइनरी) का अविष्कार किया. यह प्रसिद्ध कवि लार्ड बायरन की पुत्री थी.

                                    सन् 1890 ई0 में कम्प्यूटर के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण घटना हुई, सन् 1990 से पूर्व जनगणना का कार्य पारम्परिक तरिकों से किया जाता था. सन् 1880 में अमेरिका के जनगणना में 7 वर्ष लगे थे. कम समय में जनगणना का कार्य को सम्पन्न करने के लिए हर्मन होलेरिथ (1869-1926) ने एक मशीन बनाई जिससे जनगणना का कार्य सिर्फ 3 वर्ष में पूरा हो गया. सन् 1896 में होलेरिथ ने पंचकार्ड बनाने की एक कम्पनी टेबुलेटिंग मशीन कम्पनी स्थापित की. सन् 1911 में इस कम्पनी का अन्य कम्पनी के साथ मिलकर परिवर्तित नाम कम्प्यूटर टेबुलेटिंग रिकार्डिंग कम्पनी हो गया. सन् 1924 में इस कम्पनी का नाम पुनः परिवर्तित होकर इंटरनेशनल बिज़नस मशीन हो गया. सन् 1940 ई0 में आई0बी0एम0 के इंजिनियरों व डाॅ0 हावर्ड आईकेन (1900-1973) ने सन् 1944 में एक मशीन को विकसित किया और इसका नाम ऑटोमेटिक सिक्वेन्स कन्ट्रोल कैल्कुलेटर रखा. बाद में इस मशीन का नाम मार्क-1 रखा गया. यह विश्व सबसे पहला विघुत-यांत्रिक कम्प्यूटर था. इसमें 500 मील लम्बाई के तार व 30 लाख विघुत संयोजन थे. यह 6 सेकण्ड में एक गुणा व 12 सेकेण्ड में एक भाग की क्रिया कर सकता था. आइकेन और आई0बी0एम0 के मार्क-1 तकनीक, नई, इलेक्ट्राॅनिक्स के तकनीक के आने से पुरानी हो गई. नई इलेक्ट्राॅनिक तकनीक मशीनों में कोई यांत्रिक पुर्जा संचालित करने की आवश्यकता नहीं थी. जबकी मार्क-1 एक विधुत यांत्रिक मशीन थी. नई इलेक्टाॅनिक तकनीक के मशीनों में विधुत की उपस्थिति और अनुपस्थिति का सिद्धांत था। चूँकि इसमें कोई चलायमान पुर्जा नहीं था इसिलिए यह विधुत यांत्रिक से तेज गति कि मशीन हो गई.

सन् 1945 ई0 में एटानासोफ ने एक इलेक्ट्रॅानिक मशीन को विकसित किया जिसका नाम ए0बी0सी0 (एटानासोफ़ बेरी कंप्यूटर) रखा गया. यह सबसे पहला इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर था.

कम्प्यूटर की प्रथम पीढ़ी (1946 से 1958)

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका सेना को युद्ध के समय शस्त्रों को लक्ष्य की ओर स्थित करने लिए जटिल गणनाएँ करनी पड़ती थी. उस समय विधुत अभियंता जे0पी0 एकर्ट और जाॅन मुचली ने सेना के लिए एक इलेक्टाॅनिक कम्प्यूटर बनाकर देने का प्रस्ताव रखा. 1946 ई0 में एकर्ट और मुचली ने एक कम्प्यूटर बनाया जिसका नाम एनिएक रखा गया. यह दुनिया का सबसे पहला बृहद स्तर का जनरल पर्पज इलेक्टाॅनिक कम्प्यूटर था. यह 100 फीट लम्बा व 10 फीट उँचा था. इसमें 18000 वैक्यूम ट्यूब थीं और यह 180 किलोवाट विधुत से चलता था. इसका वनज 30 टन था. इस कम्प्यूटर के चलाने वाले ऑपरेटर्स को प्रत्येक नई गणना के लिए उन्हे कम्प्यूटर में तारों को नए संयोजन करने पड़ते थे जिसमें घंटो समय व्यर्थ जाता था इसके सामाधन के लिए गणितज्ञ जाॅन वाॅन न्यूमान ने 1946 में इकर्ट मुचली तथा गोल्डेस्टिन एण्ड बक्र्स ने एक साथ मिलकर एक कम्प्यूटर बनाया जिसमें क्रियाओं के लिए निर्देशों के समूह “प्रोग्राम” को संग्रहीत किया जा सकता था और इसके बाद नई क्रिया के लिए नया प्रोग्राम संग्रहीत किया जा सकता था. अतः नई गणनाओं के लिए कम्प्यूटर में तारों के नए संयोजन नहीं करने पड़ते थे. इसी प्रकार संग्रहीत प्रोग्राम के सिधांत का जन्म हुआ. सबसे पहला संग्रहीत प्रोग्राम कम्प्यूटर सन् 1949 में प्रो0 म्युरिस वाॅक्स ने एडसेक (इलेक्ट्रॉनिक डेली स्टोरेज ऑटोमेटिक कैलकुलेटर)  के रुप में तैयार किया गया. इसके अलावा वाॅन न्यूमान ने सन् 1950 ई0 में एडवेक (इलेक्ट्रॉनिक डीस्क्रेट वेरिएबल ऑटोमेटिक कंप्यूटर विकसित किया. एनिवैक कम्प्यूटर एनियेक का विकसित रुप था. एनिवैक कम्प्यूटर सबसे पहला ऐसा इलेक्टाॅनिक कम्प्यूटर था जिसे एक व्यापरिक कम्पनी ने विशेष रुप से व्यापारिक अनुप्रयोगों के लिए तैयार किया था. अब कर्मचारियों के लिए वेतन पत्र तैयार करने और लेखांकन कार्य के लिए एक मशीन उपलब्द हो गई थी. सन् 1954 में इसमें थोड़ा सा परिवर्तन करके मैमर्स जनरल इलैक्ट्रिक कारपोरेशन ने यूनिवैक-1 तैयार किया.

कम्प्यूटर की द्वितीय पीढ़ी (1958 से 1964)

द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों में मुख्य तार्किक पुर्जा “वैक्यूम ट्यूब” के स्थान पर ट्राँजिस्टर लगाया जाने लगा जिसे विलियम वाल्टन हो सर, जॉन बॉडी तथा विलियम शोक्ल्ली तीनो वैज्ञानिक ने मिल कर इसको विकसित किये थे. इसे सन् 1947 ई0 में विकसित किया था. ट्राँजिस्टर का कार्य “वैक्यूम टयूब”  की तरह था लेकिन इसकी कार्य करने गति अधिक थी तथा आकार में छोटा व विश्वसनीय था और विधुत की कम खपत भी होती थी. इसके पीढ़ी में बहुत सारे सुधार कम्प्यूटर में किये गए:-

  1. संग्रह मध्यम के रुप में पंचकार्ड के अलावां चुम्बकीय टेप और डिस्कों का प्रयोग हुआ.
  2. मेग्नेटिक ड्रम के स्थान पर अब मेग्नेटिक कोर मैमोरी का प्रयोग हुआ.
  3. प्रारंभिक कम्प्यूटरों में इनके रख-रखाओं की जटिलता थी. कम्प्यूटर का मोड्यूलर रुप तैयार किया गया जिसमें एक समान भागों को अलग बोर्ड पर समूहीकृत किया गया जिससे किसी भाग के खराब होने पर बोर्ड को ही बदला जा सके.
  4. मशीनी और असेम्बली भाषा की जटीलता से बचने के लिए सरल कम्प्यूटर भाषा अर्थात् उच्चस्तरिय भाषा का विकाश हुआ जैसे- फोट्रान (फार्मूला ट्रांसलेशन) कोबोल (कॉमन बिज़नस ओरिएंटेड लैंग्वेज) आदि. द्वितीय पीढ़ी में तीन घटनाएँ हुई, वे वायुयानों के यात्रियों के लिए आरक्षण प्रणाली, टेलस्टार की स्थापना और प्रबंध्न सूचना प्रणाली कर उदय. सन् 1962 ई0 में आई0बी0एम0 और अमेरिकन एयरलान्स ने सबसे पहले वायुयान आरक्षण प्रणली को विकसित किया था, टेलस्टार एक संचार उपग्रह है जो सन् 1962 में स्थापित किया गया था.

कम्प्यूटर की तृतीय पीढ़ी (1964 से 1971)

कम्प्यूटर की तृतीय पीढ़ी सन् 1964 के मध्य में प्ररंम्भ हुई थी. जबकी आई.बी.एम. (इंटरनेशनल बिज़नस मशीन) ने कम्प्यूटर का ऐतिहासिक उत्पाद बनाकर प्रस्तुत किया. इस कम्पनी ने छह कम्प्यूटरों का परिवार तैयार किया जिसका नाम था – सिस्टम 1360 लाइन था. इस प्रकार कम्प्यूटरों की श्रृंखला का प्रारंभ हुआ. इस पीड़ी में कम्प्यूटरों के परिपथ के रुप में मुख्य तार्किक भाग के रुप में आई.सी. “एकीकृत परिपथ” (इंटरग्रेटेड सर्किट) लगाया जाता था, जिसे सन् 1958 में जैक किल्बी द्वारा विकसित किया गया था. आई0सी0 को मेटल, ऑक्साइड तथा सेमीकंडक्टर का प्रयोग कर बनाया गया था. इस पीढ़ी के निम्नलिखित रुप थे.

  1. कम्प्यूटर सृंखला का विचार धारा का प्रचलन इसी पीढ़ी में हुआ.
  2. कम्प्यूटर के सभी क्रियाओं को नियंत्रित करने के लिए नियंत्राण प्रोग्रामों का एक समुह ऑपरेटिंग सिस्टम बनाया गया. इस ऑपरेटिंग सिस्टम से कम्प्यूटर के सभी आन्तरिक कार्य स्वचलित हो गये.
  3. इस पीढ़ी में नई उच्चस्तरीय कम्प्यूटर भाषाओं का अविष्कार हुआ. बाजार में यूजर की आवश्यकताओं के आधार पर नई कम्प्यूटर-भाषाएँ आने लगीं जैसे उच्चस्तरीय भाषा, बेसिक (Beginners All Purpose Symbolic Instruction Code) का विकाश हुआ जो सीखने में सरल थीं.
  4. कम्प्यूटर के आकार को छोटा किया गया और इसे मिनी कम्प्यूटर का नाम दिया गया सबसे पहला मिनी कम्प्यूटर PDP-8 एक रेफ्रिजरेटर के आकार का था जिसकी किमत 18.000 डाॅलर थी. इसे DEC (Digital Equipment Corporation) नामक कम्पनी ने तैयार किया था.
  5. कम्प्यूटर में दस्तावेजो को टंकित करके तैयार करना वर्ड प्रोसेसिंग कहलाता है. इसकी सुरुआत हुई जबकी IBM ने सन् 1964 में एक मशीन MT/ST (Magnetic Tape Selecting Typewriter) तैयार करके बाजार में उतारी.

कम्प्यूटर की चतुर्थ पीढ़ी (1971 से 1981)

इस पीढ़ी में कम्प्यूटर के लिए लार्ज स्केल आई0सी0 (Large Scale Integrated Circuit) बनाना संभव हो गया अब एक इंच में 300000 ट्राँजिस्टरों के बराबर का परिपथ बनाना संभव हो गया अतः कम्प्यूटर के संपुर्ण सी0पी0यू0 का परिपथ एक छोटे से परिपथ आ गया इसे Marcian Hoff  ने इंटेल कंपनी (Intel Corporation) में तैयार किया गया. सन् 1970 ई0 में तैयार किये गये इस चिप का नाम Intel 4004 था और इस छोटे से चिप को माइक्रोप्रोसेसर (Microprocessor) कहा जाने लगा. यह सबसे पहला माइक्रोप्रोसेसर था. माइक्रोप्रोसेसर युक्त कम्प्यूटर को माइक्रो कम्प्यूटर कहा जाने लगा. अब एक चिप के उपर कम्प्यूटर बनाना संभव हो गया. इसके बाद माइक्रो कम्प्यूटर को एक सामान्य व्यक्ति के लिए उपयुक्त बनाना था. सन् 1970 ई0 में सबसे पहला माइक्रो कम्प्यूटर Altair 8800 MITS नामक कम्पनी ने बनाया. मिट्स कम्पनी ने हावर्ड विश्वविद्यालय के छात्र बिल गेट्स (Bill Gates) को Altair 8800 माइक्रो कम्प्यूटर में बेसिक भाषा को स्थापित करने का ठेका दिया गया. बिल गेट्स का यह प्रयास सपफल रहा और इसके बाद इन्होने अपनी कम्पनी माइक्रोसाॅफ्रट कम्पनी की स्थापना की जो आज विश्व की सबसे बड़ी सॉफ्टवेर कम्पनी है. इस पीढ़ी के निम्नलिखित गुण थे. जैसेः-

  1. कम्प्यूटर के इलेक्ट्रॅनिक परिपथ को कम से कम जगह में तैयार करने का प्रयास किया गया. इसके लिए आई0सी0 को छोटे से छोटे एवं गति में तेज किए गये. अब एक सिलीकन पदार्थ से बनी चिप जो उँगली के नाखून के आकार के बारबर होती है, जिसपर लाखों परिपथ होते है.
  2. पूर्व की पीढ़ी में प्रयुक्त कोर मेमोरी (Core Memory) के स्थान पर अब अर्धचालक या सेमीकंडक्टर पदार्थ की मेमोरी का प्रयोग होने लगा. यह नयी मेमोरी गति में तेज, आकार में छोटी और सस्ती थी.
  3. अब कम्प्यूटर के बढ़ते प्रचलन से कम्प्यूटर के द्वारा किये जाने वाले कार्यो में वृद्धि हुई है. परिणामस्वरुप सभी छेत्रों में अलग-अलग सॉफ्टवेर बनाये जाने लगे हैं. स्प्रेडशीट (Spreadsheet), एप्लीकेशन जनित (Application Generator), डाटाबेस (Database) का कार्य करने वाले सॉफ्टवेर तैयार हुई. इनमें कार्य करना BAIC, FORTRAN, COBOL आदि चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटर भाषाओँ में कार्य करना संभव था.

कम्प्यूटर की पाँचवी पीढ़ी (1995 से अब तक)

कम्प्यूटर की पाँचवी पीढ़ी वर्तमान चल रही है. इस पीढ़ी में कम्प्यूटर के अन्दर सोचने की क्षमता पैदा की जा रही है. कम्प्यूटर के सभी क्षेत्रों में कार्य कर सकने योग्य बनाया जा रहा है. इस पीढ़ी के प्रारंम्भ में कम्प्यूटरो को जोड़कर सूचना के आदान प्रदान बनाने का एक जाल इन्टरनेट (Internet) का चलन प्रारंम्भ हुआ. कम्प्यूटर के आन्तरिक इलेक्ट्राॅनिक परिपथ मे VLSIC (Very Large Scale Integrated Circuit) चिप को उन्नत करके ULSIC (Ultra Large Scale Integrated Circuit) चिप बनाये गये जिसमें माइक्रो कम्प्यूटर का आकार दिनों-दिन छोटा होता जा रहा है. आज घड़ी के आकार का भी कम्प्यूटर देख सकते हैं. दुनिया के किसी भी स्थान से हम एक पोर्टेबल (Protable) कम्प्यूटर का प्रयोग कर एक नई तकनीक इंटरनेट के जरिये सूचनाओं का अदान-प्रदान, दस्तावेजों का आदान-प्रदान, धन का आदान-प्रदान आदि का कार्य कर सकते है.

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